उत्तराखंड, जिसे “देवभूमि” के नाम से जाना जाता है, प्राचीन मंदिरों और तीर्थ स्थलों का खजाना है। इन्हीं में से एक है धारी देवी मंदिर, जो अपने रहस्य और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर कल्यासौड़ में स्थित है। धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक देवी माना जाता है, जो चार धाम यात्रा—यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ—की रक्षा करती हैं। इस मंदिर की कहानी, मान्यताएं और चमत्कार इसे एक अनोखा और पूजनीय स्थल बनाते हैं।

मंदिर का इतिहास और पौराणिक कथा || History of Dhari devi Temple
धारी देवी मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं। मान्यता है कि यह मंदिर द्वापर युग से अस्तित्व में है। एक कथा के अनुसार, एक बार भयंकर बाढ़ ने एक प्राचीन मंदिर को बहा दिया था। उस बाढ़ में माँ काली की मूर्ति भी बह गई और अलकनंदा नदी के किनारे धारो गाँव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई। गाँव वालों को मूर्ति से रोने की आवाज सुनाई दी और एक दिव्य संदेश मिला कि मूर्ति को वहीं स्थापित किया जाए। इसके बाद से यह स्थान धारी देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, धारी देवी माँ काली का अवतार हैं। मंदिर में माँ की मूर्ति का ऊपरी हिस्सा स्थापित है, जबकि निचला हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जहाँ उन्हें माँ काली के रूप में पूजा जाता है। यह भी कहा जाता है कि माँ धारी देवी का यह मंदिर 108 शक्ति स्थलों में से एक है, जो इसे और भी खास बनाता है।
धारी देवी मंदिर की सबसे रोचक और रहस्यमयी बात यह है कि यहाँ माँ की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। स्थानीय लोगों और पुजारियों का मानना है कि सुबह मूर्ति एक कन्या के रूप में दिखती है, दोपहर में युवती के रूप में और शाम को वृद्ध महिला के रूप में। यह चमत्कार न केवल श्रद्धालुओं को आश्चर्यचकित करता है, बल्कि उनकी आस्था को और गहरा करता है। यह भी माना जाता है कि मूर्ति को किसी छत के नीचे नहीं रखा जा सकता, इसलिए मंदिर का ऊपरी हिस्सा हमेशा खुला रहता है।
2013 की आपदा और धारी देवी का प्रकोप
धारी देवी मंदिर का नाम 2013 की उत्तराखंड आपदा से भी जुड़ा है। 16 जून, 2013 को मंदिर की मूर्ति को उसके मूल स्थान से हटाकर ऊँचाई पर बनाए गए एक कंक्रीट मंच पर स्थानांतरित किया गया था, ताकि श्रीनगर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए बाँध बनाया जा सके। आश्चर्यजनक रूप से, इसके कुछ घंटों बाद ही क्षेत्र में भयंकर बाढ़ और भूस्खलन शुरू हो गया, जिसने केदारनाथ सहित कई इलाकों को तबाह कर दिया। इस आपदा में सैकड़ों लोगों की जान गई और पूरा क्षेत्र बर्बाद हो गया।
स्थानीय लोगों का मानना है कि यह माँ धारी देवी का प्रकोप था, क्योंकि उन्हें उनके “मूल स्थान” से हटाया गया था। यह भी उल्लेखनीय है कि 1882 में एक स्थानीय राजा द्वारा मूर्ति को हटाने की कोशिश के बाद भी भूस्खलन हुआ था, जिसने केदारनाथ को नष्ट कर दिया था। इन घटनाओं ने धारी देवी के प्रति लोगों की श्रद्धा और भय दोनों को बढ़ा दिया।
मंदिर की वास्तुकला
धारी देवी मंदिर अलकनंदा नदी के बीच एक छोटे से टापू पर स्थित है। मंदिर की संरचना साधारण लेकिन प्रभावशाली है, जिसमें पारंपरिक गढ़वाली शैली की झलक मिलती है। मूर्ति के ऊपर कोई छत नहीं है, जो इसकी पौराणिक मान्यता को दर्शाता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए एक छोटा पैदल पुल है, जो नदी के ऊपर से गुजरता है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण श्रद्धालुओं को एक अनोखा अनुभव देता है।
कैसे पहुँचें?
धारी देवी मंदिर श्रीनगर से लगभग 15 किलोमीटर और रुद्रप्रयाग से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह दिल्ली-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर पड़ता है। निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (लगभग 117 किलोमीटर) और हवाई अड्डा जॉली ग्रांट, देहरादून (लगभग 133 किलोमीटर) है। सड़क मार्ग से मंदिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।