स्वागत है आप सभी का देव भूमि उत्तराखंड ब्लॉग में ,आज के इस लेख में हम आपको उत्तराखंड के प्रसिद्ध देवता गोलू देवता के बारे में बताने जा रहे हैं, यदि आपको यह लेख अच्छा लगे तो आप इसे अपने मित्रों को शेयर करना बिल्कुल ना भूलें।
कौन है गोलू देवता || Who is Golu devta?
ऐतिहासिक रूप से गोलू देवता का जन्म उत्तराखंड के चंपावत जिले में राजा झाल राय और माता कलिंका के घर हुआ था। वह राजशाही के दौर में राजा हुआ करते थे और वह अपनी प्रजा के प्रति अत्यंत सजग थे। वह सफेद रंग के घोड़े में सवारी करते थे और अपने राज्य के लोगों से मिलने जाते तथा उनकी हर संभव मदद करते थे। गोलू देवता को भैरव बाबा का अवतार माना जाता है और न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि जिसको कहीं न्याय नहीं मिलता, उन्हें गोलू देवता न्याय देते हैं।
गोलू देवता की कहानी || Story of Golu devta
आज भी उत्तराखंड की पारंपरिक संस्कृति में गोलू देवता को एक प्रमुख दर्जा हासिल है। उत्तराखंड की जागर में कई स्थानों पर आज भी गोलू देवता को मानव शरीर में बुलाकर न्याय किया जाता है।
लोक कथाओं के अनुसार चंपावत के कत्यूरी राजा झलराई की सात रानियां थीं, परंतु उनकी कोई भी संतान नहीं थी, जिस कारण राजा अत्यंत निराश थे। फिर राजा ने पंडितों को अपनी कुंडली दिखाई और परामर्श लिया। पंडितों ने उन्हें यह परामर्श दिया कि यदि वह आठवीं शादी कर लें, तो उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो सकती है।
इसके बाद एक दिन राजा ने सपने में एक सुंदर कन्या को देखा, जिसका नाम कलिंका था, जो नीलकंठ पर्वत पर तपस्या कर रही थी। इसके बाद राजा ने यह बात अपने सभी दरबारियों को बताई और नीलकंठ पर्वत की ओर चल पड़े। कई वर्षों के बाद उन्हें वह कन्या कलिंका मिल गई, जो तपस्या कर रही थी।
कलिंका से मिलने के बाद राजा ने उन्हें सारी कहानी बताई और कहा कि मेरी कोई संतान नहीं है, यदि वह उनसे विवाह कर लें तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाएगी। यह बात सुनकर कलिंका ने राजा से कहा कि वह साधु से इसकी अनुमति मांगे और राजा ने साधु से अनुमति मांगी तो साधु ने विवाह करने की अनुमति दे दी। कुछ समय बाद राजा और रानी के घर में एक पुत्र ने जन्म लिया, परंतु अन्य रानियां को इससे ईर्ष्या होने लगी और उन्होंने पुत्र का जन्म होते ही उसके स्थान पर एक सिलबट्टा रख दिया तथा नवजात शिशु को संदूक में रखकर काली नदी में फेंक दिया। रानी से कहा कि उन्होंने सिलबट्टे को जन्म दिया है, जिस पर रानी को अत्यंत दुख हुआ।
7 दिन के बाद वह संदूक एक मछुआरे के जाल में फंस गया। उसे मछुआरे की भी कोई संतान नहीं थी, इसलिए उसने बालक को अपने साथ रख लिया और उसका नाम गोलू रखा। कुछ समय बाद गोलू ने सपना देखा कि कलिंका और झलराई उसके असली मां-बाप हैं। इसके बाद उसने यह सारी बात मछुआरे भान को बता दी और उनसे एक घोड़ा मांगा, जिस पर मछुआरे भान ने एक लकड़ी का घोड़ा गोलू को दे दिया।
एक दिन गोलू अपने घोड़े को पानी पिलाने उस स्थान पर गए, जहां पर रानियां स्नान करने आई थीं। परंतु रानियां उनके घोड़े को पानी नहीं पीने देतीं और कहतीं कि लकड़ी का घोड़ा कैसे पानी पी सकता है। गोलू ने उत्तर दिया कि यदि एक औरत सिलबट्टे को जन्म दे सकती है, तो लकड़ी का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता? इस पर रानियां भयभीत हो गईं।
जब यह बात राजा के कानों तक पहुंची, तो उन्होंने गोलू से अपनी बात सिद्ध करने को कहा और गोलू ने अपनी मां पर हुए सभी अत्याचारों के विषय में राजा को बताया। इस पर राजा ने सभी रानियों को प्राण दंड दे दिया और गोलू को अपना पुत्र स्वीकार किया। बाद में गोलू ने उन्हें क्षमादान की अपील की, जिस कारण उन्हें न्याय का देवता के रूप में जाना जाने लगा।
गोलू देवता के प्रसिद्ध मंदिर || Famous temple of Golu devta
उत्तराखंड में गोलू देवता के अनेकों प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- गोलू देवता मंदिर, चंपावत
- गोलू देवता मंदिर, चितई
- गोलू देवता मंदिर, घोड़ाखाल
- गोलू देवता मंदिर, दुर्गा देवी