घीं संक्रांति || Ghee Sankranti
देवभूमि उत्तराखंड में अनेकों पर्व मनाया जाते हैं, जिनमें से कुछ पर्व तो विश्वव्यापी होते हैं और कुछ पर्व लोकपर्व, घीं संक्रांति देवभूमि उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध लोक पर्व है।
क्यों मनाई जाती है घी संक्रांति ?
उत्तराखंड में, आमतौर पर जो भी महीना आता है, यानी विक्रम संवत या संवत से जुड़े महीनों की जो पहली तिथि होती है, उसे एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। जब सूर्य देव अपनी राशि परिवर्तन करते हैं, तो उसी दिन संक्रांति मनाई जाती है। इसे सिंह संक्रांति भी कहा जाता है, और उत्तराखंड के गढ़वाल कुमाऊं में इसे " घीं संक्रांति" के नाम से जाना जाता है।
घी संक्रांति या घी त्यार के दिन दूध, दही, फल, और सब्जियों के उपहार एक-दूसरे को बांटे जाते हैं। उत्तराखंड में इसे ओग देने की परंपरा या ओलग परंपरा कहा जाता है, और इस त्योहार को ओलगिया त्योहार या ओगी त्यार भी कहा जाता है।
यह परंपरा कई राजाओं के समय से चली आ रही है, जब भूमिहीनों और समाज के वरिष्ठ लोगों को उपहार दिए जाते थे। इन उपहारों में काठ के बर्तन (स्थानीय भाषा में ठेकी) में दही या दूध, अरबी के पत्ते, मौसमी सब्जी और फल शामिल होते थे। अंग्रेजी शासन काल में बड़े दिन की भेंट के रूप में ठेकी में दही, मुट्ठीभर गाबा (अरबी की कोपलें), भुट्टे और खीरे दिए जाते थे।
घी संक्रांति कैसे मनाई जाती है ?
- इस संक्रांति के दिन भगवान विष्णु, सूर्य देव, भगवान नरसिंह, देवी और अन्य देवताओं की पूजा की जाती है। अपने पूर्वजों, इष्ट देवों, ग्राम देवताओं की पूजा तो की जाती है।
- इस दिन घर में स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं और उनके साथ घी परोसा जाता है। यह संक्रांति उत्तराखंड का एक लोक उत्सव है। जैसे हरेला मनाया जाता है, वैसे ही इसे भी मनाया जाता है। घी खाने के साथ-साथ, छोटे बच्चों या खासकर नवजात शिशुओं के सिर और पैरों के तलवों में भी घी लगाया जाता है।
- घी संक्रांति या घी त्यार के दिन दूध, दही, फल, और सब्जियों के उपहार एक-दूसरे को बांटे जाते हैं।
- इस दिन सभी लोग घीं का सेवन करते हैं कहा जाता है कि अगर इस दिन घी नहीं खाया जाता है, तो अगले जन्म में गिंगा (घोंघा) के रूप में जन्म लेना होता है।
बढ़ते पलायन और अपने संस्कृति के प्रति लगाव कम होने के कारण आज यह त्यौहार लुप्त होते जा रहे है , आज हम सबको जरुरत है कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित रहे ।
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