क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन , रक्षाबंधन के दिन जनेऊ बदलने का क्या है महत्त्व ?

rakshabandhan

रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे हर साल सावन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार भाई-बहन के रिश्ते की सुंदरता और उनके बीच प्यार व कर्तव्य की भावना को मनाने का दिन होता है। 

क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन ?

देवताओं और दानवों के बीच युद्धों की कहानी तो हम सभी जानते हैं। दानव हमेशा अमृत प्राप्त करने की कोशिश में रहते थे और स्वर्ग पर कब्जा करना चाहते थे। इसके लिए वे वर्षों तक तपस्या करते थे और वरदान स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु, और महेश से मनचाहा फल प्राप्त करते थे। 

राजा बलि ( राजा बलि, जो राक्षसों के राजा थे, उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था लेकिन वे भक्त प्रह्लाद के पुत्र थे और शिव के परम भक्त थे।  ) ने एक यज्ञ सम्पन्न किया था, जिसे लेकर देवताओं को चिंता थी कि अगर उनका राज्य स्वर्ग पर कब्जा कर लेगा तो पृथ्वी पर आतंक मच जाएगा। देवता  विष्णु के पास गए ।

भगवान विष्णु जी वामन अवतार में राजा बलि   के द्वार पर पहुंचे और भिक्षा में बलि से तीन पग भूमि की मांग की। वचन देने के बाद वामन भगवान ने दो पग में स्वर्ग और धरती को नाप दिया। लेकिन जब तीसरा पग रखने की जगह नहीं मिली, तो बलि ने अपना वचन पूरा करने के लिए भगवान का तीसरा पग अपने सिर पर रखवा दिया।

इस बात से भगवान विष्णु जी अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया। भगवान विष्णु जी के दर्शन मिलने पर बलि ने उनसे प्रार्थना कर एक वरदान मांगा, जिसमें उन्होंने भगवान विष्णु जी को उनकी रक्षा करने के लिए कहा। इस प्रकार प्रेमवश स्वयं भगवान श्री हरि राजा बलि के द्वारपाल बनकर उनके महल में तैनात हो गए।

माता लक्ष्मी अपने स्वामी भगवान श्री हरि विष्णु जी की राह देखती रही। लेकिन जब भगवान विष्णु जी लंबे समय तक नहीं लौटे, तो माता लक्ष्मी एक साधारण स्त्री का रूप धारण कर पाताल लोक में राजा बलि के महल पहुंची और लीला पूर्वक रुदन करने लगी। जब राजा बलि को इस बात का पता चला, तो वे वहां गए और उस स्त्री से रोने का कारण पूछने लगे। तब मनुष्य रूप में आई हुई माता लक्ष्मी जी ने उन्हें बताया कि उनका कोई भाई नहीं है। उनकी व्यथा सुन राजा बलि का दिल पिघल गया और बली ने उन्हें अपनी धर्म बहन बना लिया।

इस रिश्ते को मजबूती देने के लिए माता लक्ष्मी ने राजा बलि को एक धागे का रक्षा सूत्र पहनाया। अपनी कलाई पर बहन के हाथ का रक्षा सूत्र देख राजा का मन विभोर हो गया और उन्होंने माता लक्ष्मी से एक वचन मांगने की बात कही। तब माता लक्ष्मी ने अपने असली स्वरूप में आ गईं और उन्होंने बलि से अपने स्वामी भगवान श्री हरि विष्णु जी को उनकी सुरक्षा के दायित्व से मुक्त करने का वचन मांगा। इसके बाद राजा बलि ने अपने वचन का पालन करते हुए भगवान विष्णु जी को अपने वरदान के वचन से मुक्त कर दिया। और इस तरह पहली बार रक्षा सूत्र या राखी अस्तित्व में मानी गई। तब से ही बहन अपने भाई की रक्षा के लिए कलाई पर रक्षा सूत्र के रूप में राखी बांधती आ रही


कैसे मनाया जाता है रक्षाबंधन ?


 रक्षाबंधन के दिन सुबह, बहनें राखी की पूजा करती हैं। यह पूजा अक्सर घर के पवित्र स्थान पर की जाती है, जिसमें दीपक जलाया जाता है, और राखी के साथ पूजा की सामग्री जैसे चावल, मिठाई, और तिलक का उपयोग होता है, बहन पूजा के लिए एक थाली तैयार करती है, जिसमें राखी, मिठाई, चावल, और दीपक होते हैं। 


पूजा के बाद, बहन अपने भाई का तिलक करती है और उसकी लंबी उम्र की कामना करती है , तिलक के बाद, बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसे मिठाई खिलाती है। राखी बांधने के साथ, बहन भाई से उसके अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना करती है।, भाई राखी बांधने के बाद, बहन को उपहार या पैसे देकर उसकी कलाई की रक्षा करने का वचन देता है। इसके अलावा, भाई अपनी बहन को मिठाई और उपहार देकर उसे आशीर्वाद भी देता है।



आज ही के दिन यज्ञोपवित यानी जनेय बदला जाता है। यज्ञोपवित यानी जनेय आपको याद दिलाता है कि आपके कंधों पर तीन दायित्व या ऋण हैं: माता-पिता के प्रति दायित्व, समाज के प्रति दायित्व, और ज्ञान के प्रति दायित्व। जब हम कहते हैं ऋण, तो हमें लगता है कि यह कोई कर्जा है जो हमें वापस करना है, लेकिन इसे एक दायित्व के रूप में समझना चाहिए। यह पिछली पीढ़ी के प्रति, आने वाली पीढ़ी के प्रति, और वर्तमान पीढ़ी के लिए होता है। और इसीलिए आप धागे को तीन बार लपेटते हैं। यही इसका महत्व है।

मुझे अपना शरीर शुद्ध रखना है, अपना मन शुद्ध रखना है, और अपनी वाणी शुद्ध रखनी है। और जब आपके चारों ओर एक धागा लटका रहता है, तो आपको हर दिन यह याद आता है कि मेरे ये तीन दायित्व हैं। पुराने दिनों में महिलाओं को भी यह धागा पहनना होता था। यह केवल एक जाति या किसी और जाति तक सीमित नहीं था; इसे हर कोई पहनता था। फिर चाहे वह ब्राह्मण हो, वैश्य हो, क्षत्रिय हो, या शूद्र। लेकिन बाद में यह सिर्फ कुछ लोगों तक ही सीमित रह गया।

तो इस दिन जब यह पवित्र धागा यानी जनेय बदला जाता है, तो इसे एक संकल्प के साथ किया जाता है कि मुझे शक्ति प्राप्त हो कि मैं जो भी कर्म करूं, वह कुशल और श्रुत हो। कर्म करने के लिए भी किसी को योग्यता चाहिए और जब शरीर शुद्ध हो, वाणी शुद्ध हो, और मन जागृत हो, तभी काम पूरा होता है। ऐसा कहा गया है कि किसी काम को करने के लिए, चाहे वह आध्यात्मिक हो या फिर सांसारिक, उन्हें कुशलता और योग्यता जरूरी है। और इस कुशलता और योग्यता को पाने के लिए आपको जिम्मेदार होना पड़ेगा।

कितना सुंदर संदेश हमें दिया गया है। यज्ञोपवित यानी जनेय संस्कार मानो यह सीखना है कि दायित्व कैसे लिए जाते हैं। जनेय एक पवित्र धागा है। इसे सिर्फ ऐसे ही नहीं बदल देना चाहिए। जीवन में दायित्व होते हैं, तो इसे सजगता और संकल्प के साथ बदला जाता है कि मैं जो भी करूं, उसे पूरे दायित्व के साथ करूं।

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