तो ऐसे पड़ा वीरान घाटी का नाम मसूरी।
भारत के प्रसिद्ध हिल स्टेशन मसूरी के बारे में तो आपने सुना ही होगा। यहां हर साल लाखों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। लेकिन आज हम आपको मसूरी के इतिहास की कुछ ऐसी दिलचस्प बातें बताएंगे, जो बहुत कम लोग जानते हैं। जैसे कि इस जगह का नाम मसूरी क्यों पड़ा, किसने इसे बसाया था, और ब्रिटिश काल में मसूरी में कैसे विकास हुआ। उत्तराखंड में स्थित मसूरी को "पहाड़ों की रानी" के नाम से भी जाना जाता है। यह जगह 6500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यहां का मौसम सालभर ठंडा रहता है। देश-विदेश से पर्यटक यहां घूमने के लिए आते हैं।
क्या आप जानते हैं कि मसूरी का नाम कैसे पड़ा? मसूरी को 1827 में ब्रिटिश मिलिट्री अधिकारी कैप्टन यंग ने खोजा था। वह अपने कुछ साथियों के साथ पर्वतारोहण करते हुए यहां पहुंचे थे। यहां पहुंचकर उन्हें दून घाटी के सुंदर नजारे और सुहाना मौसम बहुत पसंद आया। उन्होंने इस जगह को छुट्टियां बिताने के लिए सबसे बेहतरीन पाया। उन्होंने देखा कि यहां पर "मंसूर" के पेड़ बहुत ज्यादा हैं और इसीलिए उन्होंने इस जगह को मसूरी कहना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यह नाम प्रचलित हो गया।
उस समय तक मसूरी एक निर्जन पहाड़ था। 1828 में अंग्रेजों ने लंढौर में अपना पहला भवन बनवाया। 1829 में लॉरेंस ने लंढौर बाजार में अपनी पहली दुकान खोली। अंग्रेजों के द्वारा बसाए गए अन्य हिल स्टेशनों की तरह यहां पर भी माल रोड है। कहा जाता है कि अंग्रेजों के समय में इस रोड पर भारतीयों और कुत्तों का जाना मना था, यह सिर्फ अंग्रेजों के लिए घूमने की सड़क थी।
महान सर्वेयर जॉर्ज एवरेस्ट को भी यह जगह काफी पसंद आई और उन्होंने 1832 में यहां अपना घर बनवाया। उनका यह घर आज भी मसूरी में मौजूद है। इसके बाद जॉन मैक्केन ने मसूरी में पहला पब्लिक स्कूल स्थापित किया। 1900 में जब हरिद्वार से देहरादून तक रेल मार्ग का निर्माण हुआ, तब यहां लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। 1901 तक मसूरी की कुल आबादी 4471 थी, जिसमें से 78% अंग्रेज थे। 1926 से 1931 के बीच मसूरी तक पक्की सड़क भी पहुंचाई गई और यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या और बढ़ने लगी।
मसूरी का एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है कैंपटी फॉल, जो मसूरी से 12 किलोमीटर दूर है। यह जगह बहुत ही खूबसूरत है। 1835 के बाद इस जगह को ब्रिटिश अधिकारी जॉन मैक्केन ने पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया। "कैंपटी" दो शब्दों से मिलकर बना है - "कैंप" और "टी"। अंग्रेज लोग अक्सर यहां कैंपों में बैठकर चाय पार्टी करते थे, इसलिए इस फॉल का नाम कैंपटी फॉल पड़ा। लोग आज भी यहां भारी संख्या में आते हैं और नहाने का आनंद लेते हैं।
मसूरी भारत की कई बड़ी हस्तियों को भी पसंद है। मोतीलाल नेहरू अक्सर यहां घूमने के लिए आते थे। महात्मा गांधी भी दो बार मसूरी आए थे, एक बार 1929 में और एक बार 1946 में। गांधीजी कहा करते थे कि मसूरी की सुंदर पहाड़ियों को देखकर वे अपने सारे दुख दर्द भूल जाते थे।
आजाद भारत में 1968 में यहां राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी की स्थापना हुई, जिसमें भारत के प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। 1977 में लाइब्रेरी बाजार से गनहिल तक रोप-वे का निर्माण हुआ। अप्रैल 1962 में दलाई लामा चीन अधिकृत तिब्बत से निर्वासित होकर यहीं आए थे। तब यहां पहला तिब्बती स्कूल 1968 में खोला गया था। इसके कुछ समय बाद दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला चले गए थे। भारत के प्रसिद्ध लेखक रस्किन बॉन्ड भी मसूरी में ही रहते हैं और उन्हें भी यह जगह बहुत पसंद है।
तो ये थीं मसूरी के इतिहास से जुड़ी कुछ रोचक बातें। मसूरी आज भी भारत का एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है और इसके आसपास कई खूबसूरत पहाड़ियां, झरने और घाटियां हैं। गर्मियों और सर्दियों में यहां भारी संख्या में पर्यटक आते हैं।
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