हरेला क्या है, और क्यों मनाया जाता है?
नमस्कार साथियो , mydevbhoomi.in में आपका स्वागत है , आज के इस लेख में हम आपको उत्तराखंड के एक लोकपर्व हरेले के विषय में बताने जा रहे है। अगर आपको आज का यह लेख पसंद आये तो आप इसे लाइक और शेयर जरूर कीजियेगा।
देवभूमि उत्तराखंड में अनेकों पर्व मनाया जाते हैं, जिनमें से कुछ पर्व तो विश्वव्यापी होते हैं और कुछ पर्व लोकपर्व, हरेला देवभूमि उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध लोक पर्व है जिसका अर्थ है हरियाली, यह ऋतु के अनुसार मनाया जाने वाला पर्व है।
हरेला साल में 3 बार मनाया जाता है।
चैत्र माह में - प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है,चैत्र माह में बोया/काटा जाने वाला हरेला गर्मी के आने की सूचना देता है।
आश्विन माह में - आश्विन माह में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है,आश्विन माह की नवरात्रि में बोया जाने वाला हरेला सर्दी के आने की सूचना देता है।
श्रावण माह में - सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है।
श्रावण मास में मनाए जाने वाले हरेले का विशेष महत्व है, क्योंकि हिंदू धर्म के ग्रंथों के अनुसार श्रावण भगवान शंकर का प्रिय महीना है जिस कारण सावन मास में मनाए जाने वाले हरेले को पूरे उत्तराखंड ( गढ़वाल और कुमाऊं ) में धूमधाम से मनाया जाता है।
ग्रीष्म ऋतु के बाद जब श्रावण का महीना आता है तो वर्षा होनी प्रारंभ हो जाती है और सूखे पड़े वृक्षों में पुनः हरियाली आने लगती है, चारों ओर हरियाली का वातावरण होने लगता है जिस कारण प्रत्येक वर्ष श्रावण के महीने में हरेले का पर्व मनाया जाता है।
हरेले की शुरुआत श्रावण मास प्रारंभ होने से 9 दिन पूर्व यानी कि आषाढ़ के महीने में ही हो जाती है। इसमें किसी टोकरी, बर्तन आदि में उपजाऊ मिट्टी भरकर घर के किसी कोने अथवा मंदिर के समीप रख दिया जाता है और इसमें 5-7 प्रकार के अनाज जैसे कि- गेहूं, जो, उड़द, सरसों, भट्ट इत्यादि को बो दिया जाता है, तथा 9 दिन तक पानी का छिड़काव किया जाता है, आशा की जाती है कि यह पौधे जल्द से जल्द उगने लगे और घने हो, आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन्हीं पौधों को हरेला कहा जाता है, मान्यताओं के अनुसार हरेला जितना अच्छा होता है फसल भी उतनी ही अच्छी होती है।
दसवे दिन पूजा पद्धति के साथ हरेले को काटा जाता है और घर में पकवान बनते हैं, हरेले को सर्वप्रथम मंदिर में स्थानीय देवताओं ,भगवान को चढ़ाया जाता है और अच्छी फसल सुख समृद्धि की कामना की जाती है। उसके बाद हरेले को भगवान का आशीर्वाद मानकर परिवार के मुखिया परिवार के सभी सदस्यों के सिर में अथवा कान के पीछे रखते हैं , और हरेले का गीत गाते हैं।
हरेले का गीत - जब घर के बड़े बुजुर्ग परिवार के सदस्यों के सिर में हरेला रखते है तो वह हरेले का गीत गाते है , और उन्हें आशीर्वाद / शुभकामनायें देते है। हरेले का यह गीत पहाड़ी भाषा में होता है , अगर इस गीत के हिंदी अर्थ के बात की जाए तो आपको बता दे की इस गीत में शुभकामनायें दी जाती है ।
हरेले का गीत कुछ इस प्रकार है -
जी रया ,जागि रया ,
यो दिन बार, भेटने रया,
दुबक जस जड़ हैजो,
पात जस पौल हैजो,
स्यालक जस त्राण हैजो,
हिमालय में ह्यू छन तक,
गंगा में पाणी छन तक,
हरेला त्यार मानते रया,
जी रया जागी रया.
जिनके घर के सदस्य परिवार से दूर कहीं बाहर होते हैं, उनके लिए हरेला भेजा भी जाता है ताकि वह हरेला मिलने पर उसे आशीर्वाद समझ अपने सिर पर रख सकें।
हरेले के दिन बड़ी मात्रा में वृक्षारोपण किया जाता है, सभी लोग कोई ना कोई पौधा अपने घर में अवश्य लगाते हैं।
0 टिप्पणियाँ
If you want to ask any question related to Devbhoomi Uttarakhand and Himachal, then definitely tell by commenting, do comment to ask questions related to this post.