होली क्या है, क्यों मनाई जाती है

होली क्या है, क्यों मनाई जाती है

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Holi





होली क्या है ( Holi Kya Hai )?


होली भारत का एक प्रमुख त्योहार है जोकि बसंत ऋतु में मनाया जाता है, होली को रंगो का त्योहार कहा जाता है । होली के दिन सभी लोग एक दूसरे को अबीर, गुलाल और रंग लगाते हैं, होली के दिन सभी के घरों में पकवान बनते हैं और लोग एक दूसरे से मिलने उनके घर जाते हैं, रंग लगाते हैं और इस त्यौहार का आनंद लेते हैं।

होली से 1 दिन पहले लोग होलिका दहन करते हैं तथा होलिका दहन के अगले दिन छलड़ी मनाई जाती है और इस दिन सभी एक दूसरे को अन्य दिनों की अपेक्षा खूब रंग, अबीर, गुलाल लगाते हैं

होली मनाने के पीछे का एक भाव यह भी है कि लोग आपसी शत्रुता को समाप्त कर एक नई शुरुआत करें


होली क्यों मनाई जाती है ( Holi Kyu Manayi Jati Hai )?


होली मनाने के पीछे अनेकों कहानियां है, जिनमें से भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप तथा भगवान श्री कृष्ण की कहानी लोकप्रिय है।


भक्त प्रहलाद तथा हिरण्यकश्यप की कहानी


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होलिका हिरण्यकश्यप की बहन का नाम था, जब हिरण्यकश्यप अपनी शक्ति के नशे में चूर होकर स्वयं को भगवान समझने लगा तो उसने अपनी प्रजा पर अनेकों अत्याचार किए। हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रजा से कहा कि वह भगवान की पूजा ना करें, और उसकी पूजा करना प्रारंभ कर दें।

हिरण्यकश्यप का एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था, प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्यकश्यप ने उसे बहुत समझाया, जब प्रहलाद नहीं माना तो उसने प्रहलाद को मरवाना उचित समझा, और उसे मारने के अनेकों प्रयत्न किये । हिरण्यकश्यप जितनी भी बार प्रहलाद को मारने की कोशिश करता प्रह्लाद हर बार बच जाता, अंत में उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया । होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग से नहीं जल सकती थी, इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को होलिका की गोद में बैठाकर आग लगा दी, परंतु भगवान की कृपा से प्रह्लाद तो बच गया, लेकिन होलिका जल गई और इसी दिन से होली का पर्व प्रारंभ हुआ।


 भगवान श्री कृष्ण की कहानी


होली मनाने के पीछे की एक कहानी यह भी है, कि जब भगवान श्रीकृष्ण दुष्टों का संहार कर वृंदावन वापस आए तो उन्होंने गोपियों के संग रास रचाई, तब से होली का पर्व मनाया जाने लगा।


होली के पीछे की कई कहानियां हैं, परंतु भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी सबसे प्रचलित है।


राज्यों की भिन्न-भिन्न होली


देश के अलग-अलग राज्यों में होली मनाने का तरीका अलग-अलग है, कहीं फूलों से होली खेली जाती है तो कहीं लठमार होली खेली जाती है, परंतु तरीका चाहे अलग अलग हो लेकिन हर जगह रंगों से होली खेली जाती है


उत्तराखंड की होली ( Uttarakhand Ki Holi )।


उत्तराखंड की कुमाऊं व गढ़वाल की होली अत्यंत प्रसिद्ध है, कुमाऊं की खड़ी होली के विषय में कौन नहीं जानता, खड़ी होली में रंग वाली होली से कुछ दिन पहले से ही गांव के बच्चे , बूढ़े और जवान सभी मिलकर घर घर जाते हैं और होली ( लोकगीत ) गाते हैं, कुमाऊं की भांति गढ़वाल में भी खड़ी होली मनाई जाती है। इसके साथ ही बैठक होली का भी आयोजन किया जाता है।


उत्तराखंड की कुछ खड़ी होली के गीत ( लोकगीत )

सिद्धि करत यो गणपति राज

विघन हरत यो गणपति राज
अरघ सिंहासन मूषक वाहन
लम्बोदर वाके चारों हाथ, विघन हरत यो ।।
सिद्धि करत यो गणपति राज, विघन हरत यो ।।

पूजें गणपति देवा

पूजें गणपति देवा ।। 2 ।।
हाँ हाँ हाँ हाँ पूजें गणपति देवा ।।
माता जिनकी पारवती हैं
पिता हैं महादेवा, पूजें गणपति देवा ।।
गौरी को गणपति मूसा को वाहन
सब ही करें उसकी सेवा, पूजें गणपति देवा ।।
कौन चढ़ावै अक्षत चंदन
कौन चढ़ावै मेवा, पूजें गणपति देवा ।।
राजा चढ़ावै अक्षत चंदन
रानि चढ़ावै मेवा, पूजें गणपति देवा ।।
सिद्धि करत यो गणपति राज
एक दंत गज लम्बोदर है, सिद्धि करत विघ्न हरत

सिद्धि को दाता विघ्न विनाशन


होली खेले गिरजापति नन्दन। सिद्धि को दाता
गौरी को नन्दन, मूसा को वाहन। होली खेले........
लाओं भवानी अक्षत चन्दन
पूजूँ मैं पहले जगपति नन्दन। होली खेले.........
गज मोतियन से चौक पुराऊँ
अर्घ दिलाऊँ पुष्प चढ़ाऊँ। होली खेले........
ताल बजावे अंचन, कंचन
डमरू बजावे शुंभ विभूषन
नाचे गावें भवानी के नन्दन। होली खेले.......


जै जै जै गिरिजा नंदन की

जै जै जै गिरिजा नंदन की
एक दंत सिर छत्र विराजै
खौर विराजै चंदन की, जै जै जै हो गिरिजा नंदन की ।।
वक्षस्थल कौस्तुभ मणि सोहै
हिय पर माला मोतिन की, जै जै जै गिरिजा नंदन की ।।
हाथ शंख औ ध्वजा विराजै
सिद्धि करत शुभ कर्मन की, जै जै जै गिरिजा नंदन की ।।


जै जै जै गिरिजा महारानी


जै जै जै गिरिजा महारानी
स्वहा स्वधा स्वरूप् तुमही हो
तुम ही रमा ब्रह्माणी, गिरिजा महारानी ।।
तुम्हारो ही ध्यान धरत सुर नर मुनि
आदि शक्ति जिय जानी, गिरिजा महारानी ।।
ब्रह्मा वेद पढ़ै तोरे द्वारे
शंकर ध्यान समानी, गिरिजा महारानी ।।

जल कैसे भरूं जमुना गहरी 

जल कैसे भरूं जमुना गहरी 
जल कैसे भरूं जमुना गहरी 
ठाड़ी भरूं राजा राम जी देखें
बैठी भरूं भीजे चुनरी
जल कैसे भरूं जमुना गहरी 
जल कैसे भरूं जमुना गहरी 
धीरे चलूं घर सास बुरी है
धमकि चलूं छलके गगरी
जल कैसे भरूं जमुना गहरी 
जल कैसे भरूं जमुना गहरी 
गोदी में बालक सिर पर गागर
परवत से उतरी गोरी
जल कैसे भरूं जमुना गहरी 
जल कैसे भरूं जमुना गहरी 


 जोगी आयो शहर में व्योपारी 

जोगी आयो शहर में व्योपारी 
 जोगी आयो शहर में व्योपारी 
अहा, इस व्योपारी को भूख बहुत है,
पुरिया पकै दे नथ-वाली,
जोगी आयो शहर में व्योपारी।
अहा, इस व्योपारी को प्यास बहुत है,
पनिया-पिला दे नथ वाली,
जोगी आयो शहर में व्योपारी।
अहा, इस व्योपारी को नींद बहुत है,
पलंग बिछाये नथ वाली
जोगी आयो शहर में व्योपारी 
 जोगी आयो शहर में व्योपारी 

 मेरो रंगीलो देवर घर ऐ रो छ …

मेरो रंगीलो देवर घर ऐ रो छ …
मेरो लाडलो देवर घर ऐ रो छ..
के हुनी साड़ी के हुनी झम्पर,
कै हुनी बिछुवा लै रो छ….
सास हुनी साड़ी ,
ननद हुनी झम्पर
मैं हुनी बिछुवा लै रो छ …
मेरो रंगीलो देवर घर ऐ रो छ . . .
मेरो रंगीलो देवर घर ऐ रो छ . . .
मेरो रंगीलो देवर घर ऐ रो छ . . .

कैले बांधी चीर, हो रघुनन्दन राजा। 


कैले बांधी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
गणपति बांधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
ब्रह्मा, विष्णु बाँधनी चीर , हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
शिव शंकर बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
रामचन्द्र बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
लछीमन बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
श्रीकृष्ण बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
बलीभद्र बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
नवदुर्गा बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
भोलानाथ बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
इष्टदेव बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०
सबै नारी छिड़कत गुलाल, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी०



शिव के मन माहि बसे काशी 

शिव के मन माहि बसे काशी ।।2।
आधी काशी में बामन बनिया,
आधी काशी में सन्यासी। शिव के मन ०
काही करन को बामन बनिया,
काही करन को सन्यासी। शिव के मन ०
पूजा करन को बामन बनिया,
सेवा करन को सन्यासी। शिव के मन ०
काही को पूजे बामन बनिया,
काही को पूजे सन्यासी। शिव के मन ०
देवी को पूजे बामन बनिया,
शिव को पूजे सन्यासी। शिव के मन ०
क्या इच्छा पूजे बामन बनिया,
क्या इच्छा पूजे सन्यासी। शिव के मन ०
नव सिद्धि पूजे बामन बनिया,अष्ट सिद्धि पूजे सन्यासी। शिव के मन ०


हाँ हाँ हाँ मोहन गिरधारी

हाँ हाँ हाँ मोहन गिरधारी। हाँ हाँ हाँ........
ऐसो अनाड़ी चुनर गयो फाड़ी
ओ हो हंसी हंसी दे गयो गारी, मोहन गिरधारी।
हाँ हाँ हाँ मोहन.........
चीर चुराय कदम चढ़ि बैठो,
हो पातन जाय छिपोई, मोहन गिरधारी।
हाँ हाँ हाँ मोहन............
बांह पकड़ मोरि अंगुली मरोड़ी,
हो नाहक राड़ मचाय, मोहन गिरधारी।
हाँ हाँ हाँ मोहन...........
दधि मेरो खाय मटकी मेरी तोड़ी
हो हंसी हंसी दे गयो गारी, मोहन गिरधारी।
हाँ हाँ हाँ मोहन..............



हरि धरे मुकुट खेले होली


हरि धरे मुकुट खेले होली, सिर धरे मुकुट खेले होली-2
कौन शहर को कुँवर कन्हइया, कौन शहर राधा गोरी
हरि धरे..
मथुरा शहर को कँवर कन्हैया, बरसाने राधा गोरी, हरि....
कौन बरन को कँवर कन्हैया, कौन बरन राधा गोरी।
श्याम बरन के कुँवर कन्हैया, गौर बरन राधा गोरी, हरि...
कितने बरस के कुँवर कन्हैया, कितने बरस राधा गोरी,
सात बरस के कुँवर कन्हैया, बारह बरस की राधा गोरी.
हरि धरे.....
काहे के दो खम्भ बने है, काहे की लागी डोरी,
अगर चन्दन को खम्भ बनो है, रेशम की लागी डोरी,
हरि धरे...
एक पर झूले कुँवर कन्हैया, दूजे पर राधा गोरी,
टूट गयो खम्भ लटक गई डोरी, रपट पड़ी राधा गोरी
हरि धरे...
जुड़ गयो खम्भ जुड़ाय गयी डोरी, हँसत चली राधा गोरी
हरि धरे मुकुट खेले होली, सिर धरे मुकुट खेले होली।



तट यमुना के तीर कदम चढ़ि

तट यमुना के तीर कदम चढ़ि
तट यमुना के तीर कदम चढ़ि कान्हा बजाई गयो बांसुरिया
कान्हा बजाई गयो बांसुरिया सखि, श्यामा बजाई गयो बांसुरिया
काहे की तेरी बाँस मुरलिया, काहे को तेरो बीन कदम चढ़ि
कान्हा बजाई गयो बांसुरिया,
तट यमुना......
हरे बाँस की बाँस मुरलिया, सोने के मेरो बीन कदम चढ़ि
कान्हा बजाई गयो बांसुरिया,
तट यमुना.....
कै स्वर की तेरी बाँस मुरलिया, कै स्वर को तेरो बीन, कदम
चढ़ि कान्हा बजाई गयो बांसुरिया,
तट यमुना.......
एक स्वर की मेरी बाँस मुरलिया, दो सुर के मेरो बीन कदम
चढ़ि कान्हा बजाई गयो बांसुरिया, तट यमुना......
कहाँ बुलावन बाँस मुरलिया, कहाँ रिझावन बीन कदम चढ़ि
कान्हा बजाई गयो बांसुरिया,
गोपियन बुलावन बाँस मुरलिया, राधा रिझावन बीन
कदम चढ़ि कान्हा......
तट यमुना के तीर कदम चढ़ि कान्हा बजाई गयो बाँसुरिया।



रंग की गागर सिर में धरे आज कन्हैया रंग हरै 

रंग की गागर सिर में धरे आज कन्हैया रंग हरै ।।
देखो, आज कन्हैया रंग हरै।।
होली, खेलि - खाली मथुरा को चलै, आज कन्हैया ।।
नङरा निशाना साथ चलै, आज कन्हैया ।।
ढोलक मंजीरा साथ चलै, आज कन्हैया ।।
अबीर को पात अस्मान उड़ै, आज कन्हैया ।।


द्रुपद राजा ने यज्ञ कियो है द्रोपदी ब्याह रचाना

द्रुपद राजा ने यज्ञ कियो है द्रोपदी ब्याह रचाना, कैसो परण उठाना ।।2।।
हाँ हाँ हाँ हाँ कैसो परण उठाना ।।1।।
देश - देशन के भूपति आए, आए सब बलवाना, कैसो परण ।।
हाँ हाँ हाँ हाँ कैसो परण उठाना ।।
नीचे तेल कड़ाह भरी है, ऊपर धरो है निशाना, कैसो परण ।।
हाँ हाँ हाँ हाँ कैसो परण उठाना ।।
कन्या द्रोपदी विनय करति है, लाज धरो भगवाना,कैसो परण ।।
हाँ हाँ हाँ हाँ कैसो परण उठाना ।।
ब्राह्मण वेश में पाण्डव आए, अर्जुन मारो निशाना, कैसो परण ।।
हाँ हाँ हाँ हाँ कैसो परण उठाना ।।
सकल सभा मन सकुच भई है, भूपति मन हरसाना, कैसो परण ।।
हाँ हाँ हाँ हाँ कैसो परण उठाना ।।
द्रुपद - सुता को ब्याह भयो है, घर घर सुयश बखाना, कैसो परण ।।
हाँ हाँ हाँ हाँ कैसो परण उठाना ।।


सीता राम को ब्याह 

सीता राम को ब्याह जनकपुर जाना है ।।
कै लख आये रे हस्ती घोड़ा, कै लख राम बरात,
जनकपुर जाना है, सीता राम को ब्याह।
छः लख आये रे हस्ती घोड़ा, अनगिन राम बरात,
सीता राम को ब्याह जनकपुर जाना है ।
हरिहर गोबर मंदिर लिपायों, मोतियन चैक पुराय,
जनकपुर जाना है, सीता राम को ब्याह ।
अबीर गलाल के मंडप बने हैं, रेशम डोर फिराय,
सीता राम को ब्याह, जनकपुर जाना है।
भर मोतियन के कलश भराये, हो रही जै जै कार,
जनकपुर जाना है, सीता राम को ब्याह।

गढ़ छोड़ि दे लंका रावन 

गढ़ छोड़ि दे लंका रावन ।। 
लंका जैसो कोट हमारो, समुंदर जैसी खाई, तापर सेतु बधावन की, गढ़ ........ ।।
शक्तिबाण लगो लछिमन के, हनुमंत औषधि लाए, तासे सुधि आवन की , गढ़ ........ ।।
राज विभीषण पाए, मृत्यु निकट रावन की, रघुवर सीता पावन की, गढ़ ........ ।।
राज लछीमन सीता लौटहि, अवधपुरी में हरसे, भरत शत्रुहन पावन की, गढ़ ........ ।।
राम सिंहासन बैठे, लछिमन चँवर डुलाऐं, सखियन मंगल गावन की, गढ़ ........ ।।
हरियर गोबर अंगना लिपायो, मातु कौशल्या करी आरती, मोतियन चौक पुरावन की, गढ़ ........ ।।
देव मनुज जै बोलें, गुरू वशिष्ठ आशीषें, घर-घर बाज बधावन की, गढ़ ........ ।।


भज भक्तन के हितकारी सिरी कृष्ण मुरारी

प्यारा, भज भक्तन के हितकारी सिरी कृष्ण मुरारी
हाँ हाँ हाँ हाँ सिरी कृष्ण मुरारी ।।
पत्थर हो के अहल्या पड़ी थी
चरण छुआ के तारी, सिरी कृष्ण मुरारी ।। हाँ हाँ हाँ हाँ सिरी कृष्ण मुरारी ।।
सत्य सीता ने सुमिरन कीन्हीं
धनुष तोड़ो त्रिपुरारी, सिरी कृष्ण मुरारी ।। हाँ हाँ हाँ हाँ सिरी कृष्ण मुरारी ।।
इन्द्र राजा को मान घटायो
नख पर पर्वत धारी, सिरी कृष्ण मुरारी ।। हाँ हाँ हाँ हाँ सिरी कृष्ण मुरारी ।।
युग युग में अवतार लियो है
भूमि को भार उतारी, सिरी कृष्ण मुरारी ।। हाँ हाँ हाँ हाँ सिरी कृष्ण मुरारी ।।

मास असौज की रात कन्हैया रास रच्यो

मास असौज की रात कन्हैया रास रच्यो यमुना तट में ।।
हाँजि कन्हैया रास रच्यो यमुना तट में ।। 1 ।।
काहे के हाथ में ढोलक बाजै
काहे के हाथ में ताल कन्हैया, रास रच्यो ।।
राधे के हाथ में ढोलक बाजै
कृष्ण के हाथ में ताल कन्हैया, रास रच्यो ।।
काहे के हाथ मंजीरा सोहै
काहे के हाथ सतार कन्हैया, रास रच्यो ।।
राधे के हाथ मंजीरा सो है
कृष्ण के हाथ सतार कन्हैया, रास रच्यो ।।


मोपति राखो आज हरी

मोपति राखो आज हरी
कौरव पाण्डव जूवा भयो है
बार अठार की बाजि धरी, मोपति ।।
कौरव पाण्डव जूवा भयो है
चौपड़ बीच में राखिधरी, मोपति ।।
जैता हारो हस्तिनागढ़ हारो
खेलत चौंसर हार पड़ी, मोपति।।
द्रोपदी चीर उतारि धरी, मोपति
रानी दुरोपति बीच सभा में
खेंचत खेंचत चीर बढ़ी, मोपति ।।

आज कन्हैया रंग हरै

रंग की गागर सिर में धरे आज कन्हैया रंग हरै II
देखो, आज कन्हैया रंग हरै II1II
होली, खेलि - खाली मथुरा को चलै, आज कन्हैया ।।
नङरा निशाना साथ चलै, आज कन्हैया ।।
ढोलक मंजीरा साथ चलै, आज कन्हैया ।।
अबीर को पात अस्मान उड़ै, आज कन्हैया ।।





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