हम सभी को गर्मियों की छुट्टियां मनाने के लिए पहाड़ी क्षेत्र अत्यंत प्रिय होते हैं, और जब पहाड़ी क्षेत्र की बात आए तो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश का नाम कहां पीछे रहता है, परंतु पहाड़ी क्षेत्रों में घूमने से पहले वहां के वनस्पति एवं जीव जंतुओं एवं संस्कृति के बारे में जान लेना अति आवश्यक है। इसीलिए आज के इस लेख में हम आपको उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में पाए जाने वाली एक ऐसी घास के विषय में बताने जा रहे हैं, जो दिखने में एक सामान्य सी घास जैसी होती है, परंतु यदि आप इसे छू ले तो आपको बड़ी समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है।
उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश के हिमालय क्षेत्र में एक विशेष प्रकार की घास पाई जाती है, जिसे लोकल भाषा में सिसौंड अथवा बिच्छू घास भी कहा जाता है। इस घास की खासियत यह होती है कि यदि आप इसे छू ले, अथवा आपके शरीर का कोई अंग इस घास के संपर्क में आ जाए, तो तुरंत ही खुजली अथवा झनझनाहट होना प्रारंभ हो जाता है, और यदि सावधानी न बढ़ती जाए तो आपकी त्वचा में लाल रंग के धब्बे भी बन सकते हैं।
बिच्छू घास क्या है (Bicchu Ghas Kya Hai) ?
बिच्छू घास को कंडाली या सिंसौण के नाम से जाना जाता है, और यह घास 4000 से 9000 फीट ऊंचाई वाले स्थान में पाई जाती है। सामान्य तौर पर यह नमी वाले स्थान अथवा छायादार स्थान में प्रचुर मात्रा में उगती है। यह एक कांटेदार वनस्पति है, जिसमें अगस्त के महीने में फूल खिलते हैं।
बिच्छू घास के उपयोग (Bicchu Ghas Ke Upyog)
बिच्छू घास के अनेक प्रयोग हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार है:
औषधीय प्रयोग (Aushdhi Upyog)
बिच्छू घास का प्रयोग पाचन सुधारने तथा रक्त को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही इसका उपयोग सूजन कम करने के लिए भी किया जाता है।
इसका प्रयोग त्वचा रोगों में, गठीयता, एलर्जी आदि में भी किया जाता है।
भोजन में उपयोग (Bhojan Mein Upyog)
बिच्छू खास का भोजन में भी उपयोग किया जाता है। इसमें आयरन प्रचुर मात्रा में होने के कारण इसका शुभ अत्यंत पौष्टिक माना जाता है। इसके साथ ही उत्तराखंड में कंडाली का साग, बिच्छू घाट से बनने वाला सांग है, जो कि उत्तराखंड में अत्यंत प्रसिद्ध है।
रेशों के लिए उपयोग (Reshon Ke Liye Upyog)
बिच्छू घास का प्रयोग रेशों के लिए भी किया जाता है। इसके रेशों से कपड़े एवं रस्सियां बनाई जाती है।
बिच्छू घास एक औषधीय पौधा है, जिसका उपयोग अनेक प्रकार के रोगों से निजात पाने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही स्थानीय तौर पर इसका प्रयोग भोजन में तथा रेशों के तौर पर भी किया जाता है। उत्तराखंड के पहाड़ों में प्रचुर मात्रा में होने के कारण यह वहां के लोगों के व्यवसाय का एक मुख्य स्रोत सिद्ध हो सकता है, जिसके लिए उत्तराखंड के लोगों को कार्य करने की जरूरत है।