टपकेश्वर महादेव मंदिर।
टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून के केंद्र से 6.5 किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट छावनी क्षेत्र में तमसा नदी के तट पर स्थित है तथा यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कौरव और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने इस स्थान पर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की, जिस कारण भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। गुरु द्रोणाचार्य के आग्रह पर भगवान शंकर शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए और गुरु द्रोणाचार्य द्वारा भगवान शंकर की पूजा करने पर अश्वत्थामा का जन्म हुआ।
कहा जाता है कि अश्वत्थामा ने गुफा के भीतर 6 माह तक एक पैर पर खड़े होकर भगवान शंकर की पूजा की, जब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर अश्वत्थामा को दर्शन दिए तो अश्वत्थामा ने उनसे दूध मांगा। भगवान शंकर ने शिवलिंग के ऊपर गाय के थन बना दिए जिसमें से दूध की धारा बहने लगी, जिस कारण भगवान शंकर को दूधेश्वर भी कहा जाने लगा।
कलयुग में यह दूध की धारा, जल की धारा में परिवर्तित हो गई और आज भी निरंतर इस स्थान पर स्थित शिवलिंग पर गिर रही है। भगवान शंकर ने अश्वत्थामा को पूर्णिमा के दिन दर्शन दिए थे, जिस कारण पूर्णिमा के दिन भगवान शंकर का दूधेश्वर के रूप में श्रृंगार किया जाता है।
टपकेश्वर महादेव मंदिर में सावन तथा शिवरात्रि के दिन देश विदेश से बहुत से भक्त आते हैं, जो अपनी मनोकामना ओं को भगवान शंकर के समक्ष आते हैं और कहा जाता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे दिल से अपनी मनोकामना लेकर आता है भगवान शंकर से कभी भी निराश नहीं करते, और अपने भक्तों की सभी मनोकामना को पूरी करते हैं।
प्रश्न:
- टपकेश्वर महादेव मंदिर कहाँ स्थित है?
- मंदिर का नाम “टपकेश्वर” क्यों पड़ा?
- गुरु द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा का इस मंदिर से क्या संबंध है?
- कलयुग में मंदिर में क्या बदलाव आया?
- टपकेश्वर महादेव मंदिर में कौन-कौन से त्योहार मनाए जाते हैं?
- भक्त इस मंदिर में क्यों आते हैं?
उत्तर:
- टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून के केंद्र से 6.5 किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट छावनी क्षेत्र में तमसा नदी के तट पर स्थित है।
- मंदिर के ऊपर स्थित चट्टान से लगातार पानी की बूंदें टपकती रहती हैं, जिसके कारण इसका नाम “टपकेश्वर” पड़ा।
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य ने इस स्थान पर भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और उनके आग्रह पर शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। गुरु द्रोणाचार्य ने भगवान शंकर की पूजा की, जिसके फलस्वरूप अश्वत्थामा का जन्म हुआ।
- अश्वत्थामा ने 6 माह तक एक पैर पर खड़े होकर भगवान शंकर की पूजा की। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और उन्हें दूध दिया। इस घटना के बाद से भगवान शंकर को “दूधेश्वर” भी कहा जाता है।
- कलयुग में दूध की धारा जल की धारा में परिवर्तित हो गई, लेकिन आज भी यह जलधारा शिवलिंग पर गिरती रहती है।
- सावन और शिवरात्रि के दिन देश-विदेश से बड़ी संख्या में भक्त टपकेश्वर महादेव मंदिर आते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर आता है, भगवान शंकर उसकी मनोकामना पूरी करते हैं।
अतिरिक्त जानकारी:
- टपकेश्वर महादेव मंदिर एक प्राचीन मंदिर है, जिसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।
- मंदिर परिसर में भगवान गणेश, हनुमान, नंदी और अन्य देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं।
- मंदिर के पास ही एक प्राकृतिक गुफा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहीं पर गुरु द्रोणाचार्य ने भगवान शिव की तपस्या की थी।
- टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।